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Sunday, 1 November 2015

ये हैं रोजाना योगा करने के फायदे

By Unknown   Posted at  02:30   No comments

ये हैं रोजाना योगा करने के फायदे 

योग से व्यक्ति अपनी अंतर्निहित शक्तियों को संतुलित रूप से विकसित कर सकता है. साथ ही योग पूर्ण स्वानुभूति कराने के साधन भी प्रदान करता है.
आज योग मात्र आश्रमों, साधु-संतों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पिछले कुछ दशकों में इसने हमारे दैनिक जीवन में अपना स्थान बना लिया है और दुनियाभर में इसके प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है तथा इसे स्वीकार भी किया है.
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान सहित औषधि विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों ने रोग निवारण, रोगों को कम करने और स्वास्थ्य के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने में इन विधियों की भूमिका की सराहना की है.
तनाव से मुक्ति
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रअसल, योग का अभ्यास मानसिक और शारीरिक विकारों अथवा रोगों से बचने और व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार लाने और तनावपूर्ण स्थितियों को सहने के लिए किया जाता है.
सबसे पहले ज़रूरी है कि हम अपनी श्वास के प्रति सजग हो जाएं. श्वास-प्रश्वास ऐसी प्रक्रिया है जो जन्म से लेकर मृत्यु तक इस शरीर से जुड़ी है.
मुख्यत: हमें श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया में सुधार लाना है. इसे हम दो भागों में बाँट सकते हैं.
पहला पूरक अर्थात श्वास लेना और दूसरा रेचक यानी श्वास छोड़ना.
योगाभ्यास करने से पहले मुख्य तौर पर सुनिश्चित कर लें कि आपका पेट खाली हो. भोजन करने के तीन घंटे बाद योगाभ्यास करना चाहिए.

Wednesday, 8 April 2015

मेष वार्षिक राशिफल 2015

By Unknown   Posted at  03:15   No comments

             मेष राशि वार्षिक राशिफल 2015

 

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करियर

करियर के लिहाज़ से यह वर्ष आपके लिए कई बेहतरीन अवसर लेकर आएगा जो आपको शिखर की ओर ले जाएँगे| इस पूरे वर्ष आपकी राशि पर अरुण ग्रह का राज रहेगा जिस कारण आप अपने हर भाव में आक्रामक रहेंगे| खासतौर पर साल के दूसरे चरण पर, जुलाई की शुरुआत से ही आपके व्यवहार में कुछ परिवर्तन आएँगे| अपने आसपास होने वाली हर घटना के पीछे आप कोई कारण, किसी तर्क को ढूँढने के प्रयास में रहेंगे| जिस भी योजना में आप काम करेंगे आप बस एक ही लक्ष्य लेकर चलेंगे- सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन| इस वर्ष आप में जो व्यक्ति नौकरी बदलने Buy Shopping Rajasthan Multi Color Net Saree from Snapdeal का विचार कर रहे हैं, उन्हें अच्छे विकल्प दिखाई देंगे| सफलता आपके समक्ष ही रहेगी, और सही समय पर सही कदम उठाने से अत्यंत लाभ होगा और जल्दी परिणाम मिलेंगे| आप व्यावसायिक स्तर पर किसी की सहायता भी करेंगे| जनवरी, मई और सितम्बर में बुध की प्रतिगामी चाल का प्रभाव देखने को मिलेगा, हालाँकि सही योजना और लक्ष्य-प्राप्ति की दृण इच्छा से आप इस वर्ष अपनी मंजिल पा ही लेंगे| कार्य संबंधित तनाव कम होगा और आप व्यावसायिक तौर वर्ष 2015 में सहज, आरामदायक और संतुष्ट समय व्यतीत करेंगे| 


समीक्षा

नववर्ष 2015 के शुभारम्भ के साथ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में, चाहे व्यक्तिगत हो या व्यवसायिक जीवन, सामाजिक या रोमांटिक, कुछ न कुछ परिवर्तन तो होते ही हैं| परिवर्तन सुखद हो, तो हर व्यक्ति दिल खोल कर उनका स्वागत करता है किन्तु यदि ये परिवर्तन उनके हित में ना हो तो? आगामी वर्ष में आपके जीवन में होने वाले सभी परिवर्तनों के बारे में यदि आप पहले से ही अवगत हो तो आप सतर्क रहकर स्वयं को उन परिवर्तनों के परिणामों से बचा सकते है| एस्ट्रोयोगी के निशुल्क 2015 वार्षिक राशिफल पाकर आप अपने जीवन में होने वाली घटनाओं के बारे में जान सकते है| ब्रह्माण्ड में होने वाली तारों और ग्रहों की स्थितियों के निरंतर परिवर्तन से हर व्यक्ति के जीवन के विभिन्न स्तरों पर प्रभाव पड़ता रहता है| एस्ट्रोयोगी के निपुण ज्योतिषियों की सहायता से आप अपने जीवन के उन सभी स्तरों – स्वास्थय, प्रेम, करियर और आर्थिक स्तरों के बारे में बारीकी से जान सकते है| यदि कोई समस्या उत्पन्न होने वाली है तो उसका समाधान जान सकते है| इसलिए अपने जीवन को धाराप्रवाह और सुचारू बनाए रखने के लिए अभी प्राप्त करे अपनी 2015 का वार्षिक राशिफल और अपने जीवन के हर रहस्य को जाने|

रोमांस

वर्ष 2015 आपके प्रेम जीवन में कईं लाभकारी पल लेकर आएगा| यदि अभी तक आपके दिल के दरवाज़े पर किसी ने दस्तक नहीं दी है, तो अब किसी खूबसूरत व्यक्ति के आने की प्रतीक्षा अवश्य करे| फ़रवरी में शुक्र का गोचर स्थान लेगा और इस प्रेम मास में आप अपने अन्दर उत्तेजनाएँ और कामेच्छा महसूस करेंगे| इस ग्रहचाल से आप काफी सशक्त और पहले से अधिक विश्वासपूर्ण हो जायेंगे| आपका विश्वास आपकी शक्ति बन कर सामने आएगा और बहुत सी परिस्थितियों में आपके लिए लाभकारी भी होगा| अपने रोमांटिक पहलु को उजागर कर आप अपने साथी का ध्यान अपनी ओर खींचने में सफल होंगे| शुक्र का प्रभाव आप पर इस कदर रहेगा कि उन्हें जिन्हें आप चाहते है, अपने दिल की बात सीधी-सीधी कहेंगे| इधर-उधर की बातों में आप अपना समय बर्बाद नहीं करेंगे| समय के साथ-साथ आपका रिश्ता और भी गहरा होता जाएगा| कई ऐसे अवसर आएँगे जब आप अपने रिश्ते को एक नयी दिशा देना चाहेंगे| इस वर्ष अपने प्रियजनों से भी खुशखबरी पा सकते है| आपसी संबंधों में आने वाली छोटी-मोटी अटकलों का सामना करने के लिए तैयार रहे और साथी के साथ मिल कर अपने प्यार को एक नया दर्जा दे| जब तक आप अपने प्यार को पा नहीं लेते, शुक्र ग्रह आपको सहयोग करता रहेगा और आपके भविष्य को एक नींव देकर रहेगा|

आर्थिक

इस वर्ष जहाँ तक आपकी आर्थिक स्तर की बात है, आप एक लाभदायक वर्ष की अपेक्षा कर सकते है| जनवरी और फ़रवरी भले ही उतने लाभकारी नहीं होंगे क्योंकि इस समय बुध अपनी विपरीत चाल का फेर चल रहा होगा| हालाँकि यह दौर आपके लिए निवेश या खरीद-फरोख्त सम्बन्ध अनेक बेहतरीन अवसर लेकर आएगा| जैसे ही संप्रेषणीयता का ग्रह बुध वापस अपनी धुरी पर सीधा चलने लगेगा आप अपनी सभी योजनाओं को पुख्ता बना सकेंगे| आपको कई निवेश-प्रस्ताव और लाभकारी सौदों के प्रस्ताव आने लगेंगे| जहाँ आर्थिक लाभ की बात आती है वहाँ आप अचानक किसी परिवर्तन की अपेक्षा कर सकते है| व्यपारियों को साझेदारी के प्रस्ताव आ सकते है| जुलाई से सितम्बर तक अरुण ग्रह उल्टी चाल चलेगा जिस कारण आपका एक अलग ही व्यक्तित्व दिखाई देगा| एस्ट्रोयोगी ज्योतिषियों के अनुसार इस दौरान आप आर्थिक निर्णयों में कोई जोखिम नही लेंगे जो एक प्रकार से आपके लिए अच्छा ही है| यह वर्ष आपके जीवन में सौहार्द के साथ-साथ ऐसे कई अवसर लेकर आएगा जिनसे आप दुनिया को दिखा सकते है कि आप कितने सक्षम है| आप नए निवेशों की योजना कर सकते है किन्तु अपने किसी ख़ास मित्र या किसी विश्वसनीय व्यक्ति से सलाह लेने से सफलता पा सकते है|






स्वास्थ्य

इस पूरे वर्ष में स्वास्थ्य को लेकर आप एकदम चुस्त-दुरुस्त रहेंगे और आपकी उर्जा का स्तर भी चरम पर होगा| आप स्वास्थ्यवर्धक एवं संतुलित आहार का पालन करेंगे| लेकिन तरीका आपका अपना ही होगा| आप इस मामले में समय-सारिणी का पालन करने में कतराते है| हालाँकि एस्ट्रोयोगी ज्योतिषियों की माने तो आपको अपनी इस आदत से पीछा छुड़ाना होगा क्योंकि लम्बे समय के बाद आपको ही परेशानी होगी| एकदम चुस्त और फिट रहने की जो भावना आपके मन में रहेगी, उससे आपके जीवन में सकारात्मकता आएगी| जैसे ही बुध की प्रतिगामी चाल का चक्कर सुलझ जाएगा वैसे ही आपकी सभी चिंताएं दूर हो जाएंगी| कोई ख़ास आपको किसी भी तनावपूर्ण स्थिति में प्रेरित करता रहेगा| स्वास्थ्य को लेकर इस वर्ष आप को स्वयं पर ध्यान देने की ज़रुरत पड़ेगी खासकर जनवरी, मई और सितम्बर के महीनों में जब बुध अपनी उल्टी चाल से आपको विचलित कर सकता है|



 

Thursday, 19 March 2015

श्री विश्वामित्र जी की कथा

By Unknown   Posted at  06:08   1 comment


        श्री विश्वामित्र जी की कथा

 

 







मिथिला के राजपुरोहित शतानन्द राम से विशेष रूप से प्रभावित हुये। शतानन्द जी ने कहा, "हे राम! आपका बड़ा सौभाग्य है कि आपको विश्वामित्र जी गुरु के रूप में प्राप्त हुये हैं। ऋषि विश्वामित्र बड़े ही प्रतापी और तेजस्वी महापुरुष हैं। ऋषि धर्म ग्रहण करने के पूर्व ये बड़े पराक्रमी और प्रजावत्सल नरेश थे। प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। ये सभी शूरवीर, पराक्रमी और धर्मपरायण थे। विश्वामित्र जी उन्हीं गाधि के पुत्र हैं। एक दिन राजा विश्वामित्र अपनी सेना को लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में गये। उस समय वशिष्ठ जी ईश्वरभक्ति में लीन होकर यज्ञ कर रहे थे। विश्वामित्र जी उन्हें प्रणाम करके वहीं बैठ गये। यज्ञ क्रिया से निवृत होकर वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र जी का खूब आदर सत्कार किया और उनसे कुछ दिन आश्रम में ही रह कर आतिथ्य ग्रहण करने का अनुरोध किया। इस पर यह विचार करके कि मेरे साथ विशाल सेना है और सेना सहित मेरा आतिथ्य करने में वशिष्ठ जी को कष्ट होगा, विश्वामित्र जी ने नम्रता पूर्वक अपने जाने की अनुमति माँगी किन्तु वशिष्ठ जी के अत्यधिक अनुरोध करने पर थोड़े दिनों के लिये उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया। "वशिष्ठ जी ने कामधेनु गौ का आह्वान करके उससे विश्वामित्र तथा उनकी सेना के लिये छः प्रकार के व्यंजन तथा समस्त प्रकार के सुख सुविधा की व्यवस्था करने की प्रार्थना की। उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके कामधेनु गौ ने सारी व्यवस्था कर दिया। वशिष्ठ जी के आतिथ्य से विश्वामित्र और उनके साथ आये सभी लोग बहुत प्रसन्न हुये।

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कामधेनु गौ का चमत्कार देखकर विश्वामित्र ने उस गौ को प्राप्त करने के विचार से वशिष्ठ जी से कहा कि मुनिवर! कामधेनु जैसी गौएँ वनवासियों के पास नहीं, राजा महाराजाओं के पास शोभा देती हैं। अतः आप इसे मुझे दे दीजिये। इसके बदले में मैं आपको सहस्त्रों स्वर्ण मुद्रायें दे सकता हूँ। इस पर वशिस्ठ जी बोले राजन! यह गौ मेरा जीवन है और इसे मैं किसी भी कीमत पर किसी को नहीं दे सकता। "वशिष्ठ जी के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र ने बलात् उस गौ को पकड़ लेने का आदेश दे दिया और उसके सैनिक उस गौ को डण्डे से मार मार कर हाँकने लगे। कामधेनु गौ क्रोधित होकर उन सैनिकों से अपना बन्धन छुड़ा लिया और वशिष्ठ जी के पास आकर विलाप करने लगी। वशिष्ठ जी बोले कि हे कामधेनु! यह राजा मेरा अतिथि है इसलिये मैं इसको शाप भी नहीं दे सकता और इसके पास विशाल सेना होने के कारण इससे युद्ध में भी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। मैं स्वयं को विवश अनुभव कर रहा हूँ। उनके इन वचनों को सुन कर कामधेनु ने कहा कि हे ब्रह्मर्षि! एक ब्राह्मण के बल के सामने क्षत्रिय का बल कभी श्रेष्ठ नहीं हो सकता। आप मुझे आज्ञा दीजिये, मैं एक क्षण में इस क्षत्रिय राजा को उसकी विशाल सेनासहित नष्ट कर दूँगी। और कोई उपाय देख कर वशिष्ठ जी ने कामधेनु को अनुमति दे दी।

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आज्ञा पाते ही कामधेनु ने योगबल से पह्नव सैनिकों की एक सेना उत्पन्न कर दिया और वह सेना विश्वामित्र की सेना के साथ युद्ध करने लगी। विश्वामित्र जी ने अपने पराक्रम से समस्त पह्नव सेना का विनाश कर डाला। अपनी सेना का नाश होते देखकर कामधेनु ने सहस्त्रों शक, हूण, बर्वर, यवन और काम्बोज सैनिक उत्पन्न कर दिया। जब विश्वामित्र ने उन सैनिकों का भी वध कर डाला तो कामधेनु ने अत्यंत पराक्रमी मारक शस्त्रास्त्रों से युक्त पराक्रमी योद्धाओं को उत्पन्न किया जिन्होंने शीघ्र ही शत्रु सेना को गाजर मूली की भाँति काटना आरम्भ कर दिया। अपनी सेना का नाश होते देख विश्वामित्र के सौ पुत्र अत्यन्त कुपित हो वशिष्ठ जी को मारने दौड़े। वशिष्ठ जी ने उनमें से एक पुत्र को छोड़ कर शेष सभी को भस्म कर दिया।" "अपनी सेना तथा पुत्रों के के नष्ट हो जाने से विश्वामित्र बड़े दुःखी हुये। अपने बचे हुये पुत्र को राज सिंहासन सौंप कर वे तपस्या करने के लिये हिमालय की कन्दराओं में चले गये। कठोर तपस्या करके विश्वामित्र जी ने महादेव जी को प्रसन्न कर लिया ओर उनसे दिव्य शक्तियों के साथ सम्पूर्ण धनुर्विद्या के ज्ञान का वरदान प्राप्त कर लिया।

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इस प्रकार सम्पूर्ण धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करके विश्वामित्र बदला लेने के लिये वशिष्ठ जी के आश्रम में पहुँचे। उन्हें ललकार कर विश्वामित्र ने अग्निबाण चला दिया। अग्निबाण से समस्त आश्रम में आग लग गई और आश्रमवासी भयभीत होकर इधर उधर भागने लगे। वशिष्ठ जी ने भी अपना धनुष संभाल लिया और बोले कि मैं तेरे सामने खड़ा हूँ, तू मुझ पर वार कर। आज मैं तेरे अभिमान को चूर-चूर करके बता दूँगा कि क्षात्र बल से ब्रह्म बल श्रेष्ठ है। क्रुद्ध होकर विश्वामित्र ने एक के बाद एक आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, रुद्रास्त्र, ऐन्द्रास्त्र तथा पाशुपतास्त्र एक साथ छोड़ दिया जिन्हें वशिष्ठ जी ने अपने मारक अस्त्रों से मार्ग में ही नष्ट कर दिया। इस पर विश्वामित्र ने और भी अधिक क्रोधित होकर मानव, मोहन, गान्धर्व, जूंभण, दारण, वज्र, ब्रह्मपाश, कालपाश, वरुणपाश, पिनाक, दण्ड, पैशाच, क्रौंच, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र, वायव्य, मंथन, कंकाल, मूसल, विद्याधर, कालास्त्र आदि सभी अस्त्रों का प्रयोग कर डाला। वशिष्ठ जी ने उन सबको नष्ट करके ब्रह्मास्त्र छोड़ने का लिये जब अपना धनुष उठाया तो सब देव किन्नर आदि भयभीत हो गये। किन्तु वशिष्ठ जी तो उस समय अत्यन्त क्रुद्ध हो रहे थे। उन्होंने ब्रह्मास्त्र छोड़ ही दिया। ब्रह्मास्त्र के भयंकर ज्योति और गगनभेदी नाद से सारा संसार पीड़ा से तड़पने लगा। सब ऋषि-मुनि उनसे प्रार्थना करने लगे कि आपने विश्वामित्र को परास्त कर दिया है। अब आजप ब्रह्मास्त्र से उत्पन्न हुई ज्वाला को शान्त करें। इस प्रार्थाना से द्रवित होकर उन्होंने ब्रह्मास्त्र को वापस बुलाया और मन्त्रों से उसे शान्त किया।

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पराजित होकर विश्वामित्र मणिहीन सर्प की भाँति पृथ्वी पर बैठ गये और सोचने लगे कि निःसन्देय क्षात्र बल से ब्रह्म बल ही श्रेष्ठ है। अब मैं तपस्या करके ब्राह्मण की पदवी और उसका तेज प्राप्त करूँगा। इस प्रकार विचार करके वे अपनी पत्नीसहित दक्षिण दिशा की और चल दिये। उन्होंने तपस्या करते हुये अन्न का त्याग कर केवल फलों पर जीवन-यापन करना आरम्भ कर दिया। उनकी तपस्या से प्रन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें राजर्षि का पद प्रदान किया। इस पद को प्राप्त करके भी, यह सोचकर कि ब्रह्मा जी ने मुझे केवल राजर्षि का ही पद दिया महर्षि-देवर्षि आदि का नहीँ, वे दुःखी ही हुये। वे विचार करने लगे कि मेरी तपस्या अब भी अपूर्ण है। मुझे एक बार फिर से घोर तपस्या करना चाहिये।"

त्रिशंकु: मिथिला के राजपुरोहित शतानन्द जी ने अपनी वार्ता जारी रखते हुये कहा, "इस बीच इक्ष्वाकु वंश में त्रिशंकु नाम के एक राजा हुये। त्रिशंकु ने वशिष्ठ जी से कहा कि वे सशरीर स्वर्ग जाना चाहते थे अतः आप इसके लिये यज्ञ करें। वशिष्ठ जी बोले कि मुझमें इतनी सामर्थ्य नहीं है कि मैं किसी व्यक्ति को शरीर सहित स्वर्ग भेज सकूँ। त्रिशंकु ने यही प्रार्थना वशिष्ठ जी के पुत्रों से भी की जो दक्षिण प्रान्त में घोर तपस्या कर रहे थे। वशिष्ठ जी के पुत्रों ने कहा कि अरे मूर्ख! जिस काम को हमारे पिता नहीं कर सके तू उसे हम से कराना चाहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि तू हमारे पिता का अपमान करने के लिये यहाँ आया है। उनके इस प्रकार कहने से त्रिशंकु ने क्रोधित होकर वशिष्ठ जी के पुत्रों को अपशब्द कहे। वशिष्ठ जी के पुत्रों ने रुष्ट होकर त्रिशंकु को चाण्डाल हो जाने का शाप दे दिया।





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शाप के कारण त्रिशंकु का सुन्दर शरीर काला पड़ गया। सिर के बाल चाण्डालों जैसे छोटे छोटे हो गये। गले में हड्डियों की माला पड़ गई। हाथ पैरों में लोहे की कड़े पड़ गये। त्रिशंकु का ऐसा रूप देखकर उनके मन्त्री तथा दरबारी उनका साथ छोड़कर चले गये। फिर भी उन्होंने सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा का परित्याग नहीं किया। वे विश्वामित्र के पास जाकर बोले कि ऋषिराज! आप महान तपस्वी हैं। मेरी इस इच्छा को पूर्ण करके मुझे कृतार्थ कीजिये। विश्वामित्र ने कहा कि राजन्! तुम मेरी शरण में आये हो। मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण करूँगा। इतना कहकर विश्वामित्र ने अपने उन चारों पुत्रों को बुलाया जो दक्षिण प्रान्त में अपनी पत्नी के साथ तपस्या करते हुये उन्हें प्राप्त हुये थे और उनसे यज्ञ की सामग्री एकत्रित करने के लिये कहा। फिर उन्होंने अपने शिष्यों को बुलाकर आज्ञा दी कि वशिष्ठ के पुत्रों सहित वन में रहने वाले सब ऋषि-मुनियों को यज्ञ में सम्मिलित होने के लिये निमन्त्रण दे आओ। "आज्ञा पाकर वे निमन्त्रण देने के लिये चले गये। उन्होंने लौटकर बताया कि सब ऋषि-मुनियों ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है किन्तु वशिष्ठ जी के पुत्रों ने यह कहकर निमन्त्रण अस्वीकार कर दिया कि जिस यज्ञ में यजमान चाण्डाल और पुरोहित क्षत्रिय हो उस यज्ञ का भाग हम स्वीकार नहीं कर सकते। यह सुनकर विश्वामित्र जी ने क्रुद्ध होकर कहा कि उन्होंने अकारण ही मेरा अपमान किया है। मैं उन्हें शाप देता हूँ कि उन सबका नाश हो। आज ही वे सब कालपाश में बँध कर यमलोक को जायें और सात सौ वर्षों तक चाण्डाल योनि में विचरण करें। उन्हें खाने के लिये केवल कुत्ते का माँस मिले और सदैव कुरूप बने रहेँ। इस प्रकार शाप देकर वे यज्ञ की तैयारी में लग गये।"

कथा को आगे बढ़ाते हुये शतानन्द जी ने कहा, "हे राघव! विश्वामित्र के शाप से वशिष्ठ जी के पुत्र यमलोक चले गये। वशिष्ठ जी के पुत्रों के परिणाम से भयभीत सभी ऋषि मुनियों ने यज्ञ में विश्वामित्र का साथ दिया। यज्ञ की समाप्ति पर विश्वामित्र ने सब देवताओं को नाम ले लेकर अपने यज्ञ भाग ग्रहण करने के लिये आह्वान किया किन्तु कोई भी देवता अपना भाग लेने नहीं आया। इस पर क्रुद्ध होकर विश्वामित्र ने अर्ध्य हाथ में लेकर कहा कि हे त्रिशंकु! मैं तुझे अपनी तपस्या के बल से स्वर्ग भेजता हूँ। इतना कह कर विश्वामित्र ने मन्त्र पढ़ते हुये आकाश में जल छिड़का और राजा त्रिशंकु शरीर सहित आकाश में चढ़ते हुये स्वर्ग जा पहुँचे। त्रिशंकु को स्वर्ग में आया देख इन्द्र ने क्रोध से कहा कि रे मूर्ख! तुझे तेरे गुरु ने शाप दिया है इसलिये तू स्वर्ग में रहने योग्य नहीं है। इन्द्र के ऐसा कहते ही त्रिशंकु सिर के बल पृथ्वी पर गिरने लगे और विश्वामित्र से अपनी रक्षा की प्रार्थना करने लगे। विश्वामित्र ने उन्हें वहीं ठहरने का आदेश दिया और वे अधर में ही सिर के बल लटक गये। त्रिशंकु की पीड़ा की कल्पना करके विश्वामित्र ने उसी स्थान पर अपनी तपस्या के बल से स्वर्ग की सृष्टि कर दी और नये तारे तथा दक्षिण दिशा में सप्तर्षि मण्डल बना दिया। इसके बाद उन्होंने नये इन्द्र की सृष्टि करने का विचार किया जिससे इन्द्र सहित सभी देवता भयभीत होकर विश्वामित्र से अनुनय विनय करने लगे। वे बोले कि हमने त्रिशंकु को केवल इसलिये लौटा दिया था कि वे गुरु के शाप के कारण स्वर्ग में नहीं रह सकते थे। इन्द्र की बात सुन कर विश्वामित्र जी बोले कि मैंने इसे स्वर्ग भेजने का वचन दिया है इसलिये मेरे द्वारा बनाया गया यह स्वर्ग मण्डल हमेशा रहेगा और त्रिशंकु सदा इस नक्षत्र मण्डल में अमर होकर राज्य करेगा। इससे सन्तुष्ट होकर इन्द्रादि देवता अपने अपने स्थानों को वापस चले गये।"

ब्राह्मणत्व की प्राप्ति: शतानन्दजी कहने लगे, "हे रामचन्द्र! देवताओं के चले जाने के बाद विश्वामित्र भी ब्राह्मण का पद प्राप्त करने के लिये पूर्व दिशा में जाकर कठोर तपस्या करने लगेबिना अन्न जल ग्रह‌‌ किये वर्षों तक तपस्या करते करते उनकी देह सूख कर काँटा हो इस तपस्या को भ़ंग करने के लिए नाना प्रकार के विघ्न उपस्थित हुए किन्तु उन्होंने बिना क्रोध किये ही उन सबका निवारण किया। तपस्या की अवधि समाप्त होने पर जब वे अन्न ग्रहण करने के लिए बैठे , तभी ब्राह्मण भिक्षुक के रुप में आकर इन्द्र ने भोजन की याचना की विश्वामित्र ने सम्पूर्ण भोजन उस याचक को दे दिया और स्वयं निराहार रह गये इन्द्र को भोजन देने के पश्चात विश्वामित्र के मन में विचार आया कि सम्भवत: अभी मेरे भोजन ग्रहण करने का समय नहीं आया है इसीलिये याचक के रूप में यह विप्र उपस्थित हो गया। मुझे अभी और तपस्या करना चाहिये। अतएव वे मौन रहकर फिर दीर्घकालीन तपस्या में लीन हो गये। इस बार उन्होंने प्राणायाम से श्वाँस रोक कर महादारुण तप किया। इस तप से प्रभावित देवताओं ने ब्रह्माजी से निवेदन किया कि भगवन्! विश्वामित्र की तपस्या अब पराकाष्ठा को पहुँच गई है। अब वे क्रोध और मोह की सीमाओं को पार कर गये हैं। अब इनके तेज से सारा संसार प्रकाशित हो उठा है। सूर्य और चन्द्रमा का तेज भी इनके तेज के सामने फीका पड़ गया है। अतएव आप प्रसन्न होकर इनकी अभिलाषा पूर्ण कीजिये।

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देवताओं के इन वचनों को सुनकर ब्रह्मा जी उन से देवताओं को साथ लेकर विश्वामित्र जी के पास पहुँचे और बोले कि हे विश्वामित्र! तुम्हारी तपस्या निःसन्देह प्रशंसनीय है। हम तुमसे अत्यन्त प्रसन्न हैं और तुम्हें सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण की उपाधि प्रदान करते हैं। तुम संसार में महान यश के भागी बनोगे। ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर विशवामित्र ने कहा कि हे भगवन्! जब आपने मुझे यह वरदान दिया है तो मुझे ओंकार, षट्कार तथा चारों वेद भी प्रदान कीजिये। प्रभो! अपनी तपस्या को मैं तभी सफल समझूँगा जब वशिष्ठ जी मुझे ब्राह्मण और ब्रह्मर्षि मान लेंगे। "विश्वामित्र की बात सुन कर सब देवताओं ने वशिष्ठ जी का पास जाकर उन्हें सारा वृत्तान्त सुनाया। उनकी तपस्या की कथा सुनकर वशिष्ठ जी विश्वामित्र के पास पहुँचे और उन्हें अपने हृदय से लगा कर बोले कि विश्वामित्र जी! आप वास्तव में ब्रह्मर्षि हैं। मैं आज से आपको ब्राह्मण स्वीकार करता हूँ। "हे रघुनन्दन! इतनी कठोर तपस्याओं एवं भारी संघर्ष के पश्चात् विशवामित्र जी ने यह महान पद प्राप्त किया है। ये बड़े विद्वान, धर्मात्मा, तेजस्वी एवं तपस्वी हैं।"

उस समय राजा जनक भी शतानन्द द्वारा वर्णित विश्वामित्र जी की कथा सुन रहे थे। वे बोले, "हे कौशिक! मैं आपको और इन राजकुमारों को मिथिला में पाकर कृतार्थ हो गया हूँ। अब अधिक समय हो गया है। भगवान भास्कर अस्ताचल की ओर जा रहे हैं। सन्ध्या उपासना का समय हो गया है। इसलिये मुझे आज्ञा दीजिये। प्रातःकाल फर आपके दर्शन के लिये आउँगा।" इतना कहकर मुनि से आज्ञा ले राजा जनक अपने मन्त्रियों सहित विदा हये। विश्वामित्र जी भी दोनों राजकुमारों के साथ अपने निश्चित स्थान के लिये चल पड़े।


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